परिकल्पना-

''मात्स्यिकी शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी एवं सर्वश्रेष्ठ संगठन बनना ।''

लक्ष्य

''आधुनिकतम आधारभूत संरचना उपलब्ध कराते हुए शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त करने के साथ विश्व के योग्यतम शिक्षकों और छात्रों को आकर्षित करना ।''

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painting by S.K.Sharma, ACTO, CIFE

अधिदेश

  • मात्स्यिकी विज्ञान के मूल विषयों में स्नातकोत्तर स्तर के शैक्षणिक कार्यक्रम संचालित करना ।

  • मात्स्यिकी के उपेक्षित क्षेत्रों में मूलभूत और युक्तिपूर्ण अनुसंधान करना ।

  • मात्स्यिकी क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों के लिए मांग आधारित प्रशिक्षण और शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करना।

  • तकनीकी सहयोग, नीति विकास एवं परामर्श सेवाओं हेतु सहयोग प्रदान करना ।

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शैक्षणिक कार्यक्रम

  • स्नातकोत्तर और डॉक्टोरल कार्यक्रम मात्स्यिकी संसाधन प्रबंधन
  • जलकृषि
  • जलीय जीव स्वास्थ्य प्रबंधन
  • मत्स्य पोषण और खाद्य तकनीकी
  • मत्स्य कायिकी और जीव रसायन
  • मत्स्य आनुवंशिकी एवं प्रजनन
  • मत्स्य जैव तकनीकी
  • मत्स्य विस्तार
  • जलीय पर्यावरणीय प्रबंधन
  • मत्स्य अर्थशास्त्र
केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान का शैक्षणिक क्षेत्र बहुत विस्तृत है । इस संस्थान में अद्यतन प्रयोगशाला और जलकृषि सुविधा से युक्त छ: विशेषीकृत प्रभाग और चार केन्द्र हैं । के. मा. शि. सं. में उत्कृष्ट प्राध्यापकवर्ग हैं; जिसमें से 95  से अधिक पी.एचडी. धारक हैं । ये सभी भारतवर्ष के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों से अध्ययन प्राप्त हैं और विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों से प्रशिक्षण प्राप्त हैं । केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान में भारतवर्ष के लगभग सभी क्षेत्रों से छात्र एवं प्राध्यापक अध्ययन एवं अध्यापन करने आते हैं, जो इस संस्थान को बहुसांस्कृतिक और प्रगतिशील रुप प्रदान करता है; जिसपर इस संस्थान को गर्व है । छात्रों का चयन राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है । अंतर्राष्ट्रीय छात्र भी यहां नामांकन करवाते हैं; जिससे संस्थान में बहुमूल्य अंतरसांस्कृतिकता को बढा़वा मिलता   है । के.मा.शि.सं. के भूतपूर्व छात्रों में 1000 से अधिक ऐसे नेतृत्वकर्ता है जो प्रतिभाशाली अनुसंधान दल का हिस्सा होने के साथ- साथ जलकृषि को वैश्विक स्तर तक ले जा रहे हैं । अभी तक 130 विदेशी छात्राओं के साथ - साथ 5100 छात्रों ने अपनी डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाणपत्र कार्यक्रम पूर्ण कर लिए हैं । केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान में व्यक्तिगत छात्र संवाद और ज्ञानार्जन को लक्षित कर छात्र-अध्यापक अनुपात श्रेष्ठ रखा गया है । के.मा.शि.सं. द्वारा पूर्णकालिक मूल डिग्री पाठ्यक्रमों के अलावा दूसरे आवश्यकता आधारित अनुकूलित कार्यक्रम भी कराए जाते हैं ।
पुरावृत्तिकों (Para-Professional)और आत्मविश्वासी उद्यमियों के निर्माण हेतु के. मा. शि. सं. और उसके केन्द्रों द्वारा व्यावसायिक विकास कार्यक्रम (पी.ड़ी.प़ी.); उद्यमिता विकास कार्यक्रम (ई.डी.पी.)और कौशल विकास कार्यक्रम (एस.डी. पी.) आयोजित किए जाते हैं । इसके साथ ही के. मा. शि. सं. मात्स्यिकी में एकमात्र ''अग्रवर्ती संकाय प्रशिक्षण का उत्कृष्टता केन्द्र'' (सी.ए़.एफ.ट़ी.) के रुप में पहचाना जाता है जहां से राज्य कृषि विश्वविद्यालय और भा.क़ृ.अ़नु.प़.के 250 से भी अधिक प्राध्यापक/वैज्ञानिकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है ।

 

नव अनुसंधान उपलब्धियॉं

  • अंत:स्थलीय मैदानी लवणीय जल का प्रयोग करते हुए मीठापानी महाझींगा (एम. रोजनबर्गी) का बीज उत्पादन ।
  • तुरंत खाने के लिए उपलब्ध मत्स्य उत्पाद जैसे फिश सॉसेजेस और फिश पनीर ।
  • पानी के क्लोरिनेशन/डिक्लोरिनेशन मुक्त परिशोधन के लिए इलेक्ट्रो-एडसॉर्पशन सिद्धांत पर आधारित प्रारंभिक स्तरीय जलीय उपचार युक्ति विकसित की गई । (पेटेंट दर्ज)
  • विभिन्न श्रिम्प विषाणु (WSSV,IHHNV,MBVऔर HPV) और एम. रोजनबर्गी (MrNV) और अतिरिक्त छोटे विषाणु (XSV) के लिए मात्रात्मक रियल-टाइम पीस़ीआ़र का विकास, मानकीकरण एवं अनुप्रयोग  ।
  • एम. रोजनबर्गी (MrNV) और अतिरिक्त छोटे विषाणु (XSV) के लिए मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी प्रदान किए और MrNV के लिए प्रतिरक्षण नैदानिकी को विकसित किया गया ।
  • एडवर्डसीला टार्डा की लिए वैक्सीन रचना विकसित की गई जो कि ई.टार्डा और लोबियो रोहिता के इंटरफिरॉन गामा जीन के लिए डीए़नए एन्टीजीन अभिग्रहित करते हैं ।
  • श्रिम्प के ''व्हाइट स्पॉट सिन्ड्रोम विषाणु के लिए आर. एन. ए. आई. आधारित वैक्सीन'' का विकास ।
  • पर्सिफॉर्म्स, प्लियूरोनैक्टिफॉर्म्स, स्कोरपैनिफॉर्म्स, सिल्यूरीफॉर्म्स और टैट्रोडोन्टीफॉर्म्स की प्रतिनिधि मछलियों हेतु डी. एन. ए. बारकोड विकसित किए गए ।
  • ट्रांसजैनिक जैब्राफिश का विकास किया गया जो कि भारी धातु के संपर्क में आने पर रैड फ्लूरोसैण्ट प्रोटीन अभिग्रहित करती है ।
  • जीवाण्विक बायोसैन्सर्स का विकास किया गया जो कि cd,Zn, pb और Hg आयन के विषैले स्तर को अनुभव करते हैं ।
  • लिगोनेसेलुलोसिक पदार्थों की अवनति में समर्थ जीवाण्विक विलगितकारियों की पहचान ।
  • खारापानी जलकृषि के लिए जीवाण्विक उर्वरक विकसित किए   गए ।
  • अंत:स्थलीय लवणीय संसाधनों से फॉस्फेट संघटक जीवाणु का पृथक्करण ।
  • मात्स्यिकी के क्षेत्र में आई.टी. के. का प्रलेखन ।
  • भारत में मात्स्यिकी और जलकृषि के विकास हेतु नीति संरचना का विकास ।
  • मात्स्यिकी के रेडियो पारिस्थितिकी के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान प्रयास हो रहे हैं । बी. आर. एन. ए़स., मुम्बई के वित्तीय सहयोग से जलीय रेडियो पारिस्थितिकी पर भारत में अपने प्रकार का एक विशेष प्रकार्यात्मक राष्ट्रीय केन्द्र का विकास किया जा चुका है ।
इन पांच वर्षों (2009-2013) में सात पेटेन्ट, एक कापीराइट, एक ट्रेडमार्क और उच्चस्तरीय जर्नल्स में 377 अनुसंधान प्रकाशन कार्य हुआ है ।

प्रमुख कार्यक्रम

  • अन्त:स्थलीय लवणीय जलकृषि

  • सजावटी मत्स्य संसाधनों का अनुप्रयोग एवं संरक्षण

राष्ट्रीय प्रसार

  • मत्स्य स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय परियोजना

  • मात्स्यिकी के परिपे्रक्ष्य में रेडियो पारिस्थितिकी का अध्ययन ।

  • मत्स्य और समुद्री जीवन की डी. एन. ए.बारकोडिंग ।

  • अतिसूक्ष्म प्रौद्योगिकी

  • रोग निरीक्षण

  • आण्विक जीवविज्ञान में एच. आर. डी.